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स्वरचित
स्वरचित

 दादा देने वाले हैं, हम लेने वाले हैं 

आज खाली हाथ नही जाना, जिसे चाहिये वो हाथ उठाना 

मेरे दादा का ठिकाना है
मेरे दादा का ठिकाना है

दादा तुमसे मिलने का, सत्संग ही बहाना है

दुनियाँ वाले क्या जाने, मेरा रिश्ता पुराना है 

दरबार गुरु के चले आना
दरबार गुरु के चले आना

खुल जायेगा किस्मत का ताला, दरबार दादा के चले आना। 

हो जायेगा तकदीर वाला, दरबार गुरु के चले आना।। 

मिले न तुम तो जी घबराये

तेरे दर्श को जी ललचाए, देखूं तो झूमे गाये 

हमें गुरु मिल गये……. 

स्वतंत्र चाल

मेरा आपकी दया से, हर काम हो रहा है। 

करते हो तुम गुरुवर, मेरा नाम हो रहा है। 

 

थोड़ासा प्यार हुआ है

आसरा एक तेरा, एक तेरा सहारा 

सुनले फरियाद मेरी, मैंने तुमको पुकारा। 

 

रात गुरु सपनें में आये

रात गुरु सपने में आये 

अखियाँ खुल गयी खुल गयी अखियाँ      अरे रे रे रे .......

तुझे सूरज कहूं या चंदा

जब तक सांसे चलती है, गुरुवर की महिमा गाऊँ।

सपने में गुरु को देखूँ, जागूं तो दर्शन पाऊँ। 

अगर तुम मिल

अगर गुरु मिल जाये, हृदय को खोल देंगे हम, 

पाप जितने किये गुरुवर के, सम्मुख बोले देंगे हम ।।ध्रुव।। 

मेरी लागी गुरु संग प्रीत...

मेरा कस के पकड़ लो हाथ, छुड़ाऊं तो छुड़ाया नहीं जाये।।