(तर्ज : मिले न तुम तो जी घबराये) 

 

तेरे दर्श को जी ललचाए, देखूं तो झूमे गाये 

हमें गुरु मिल गये……. 

 

देहली के राजा तेरी अर्थी उठी ना माणिक चौक से 

शाही फरमान से भी हिल ना सकी हाथी के जोर से 

राजा राणा शीश नमावे, वही चरण पधराये। 

हम गुरु मिल गये .... 

 

छः साल की उमर में तूने, तोड़ी ममता की जंजीर को 

दो ही वर्ष में पदवी, आचार्य मिली गुरु आपको 

मणि मस्तक में ज्ञान की चमके, मणिधारी कहलाये 

हमें गुरु मिले गये …

 

सारा श्रीसंघ घेरा, आके डाकुओं ने तुझे राह में 

वाह रे फकीर खेंची ऐसी लकीर तूने राह में 

देख देख डाकू घबराये, आँख से ना दिख पाये 

हमें गुरु मिल गये .... 

 

ओ मन बसिया, देखी जो महिमा तेरे नाम की 

दर पे सवाली जपते, हैं माला तेरे नाम की 

लक्ष्मी तुम्हीं से प्रीत लगाये, तुम्हीं को हाल सुनाये 

हमें गुरु मिल गये ...