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अगर तुम मिल

(तर्ज : अगर तुम मिल) 

अगर गुरु मिल जाये, हृदय को खोल देंगे हम, 
पाप जितने किये गुरुवर के, सम्मुख बोले देंगे हम ।।ध्रुव।। 

किसी का ना बुरा सोचूँ, प्रतिज्ञा आज करता हूँ, 
किसी का ना बुरा बोलूँ, ये चिन्तन आज धरता 
फिर भी मन डगमगाए-२, तो संयम से रोक लेंगे हम ।।1।। 

पापों की तो नहीं सीमा, किस-किस को बतायेंगे, 
जो भी दण्ड दोगे गुरुवर तुम, खुशी से वो स्वीकारेंगे, 
पाप को काटने अपने-२, जीवन को झोंक देंगे हम ||2|| 

जब से तेरी कृपा पायी है, तब से जीना आया है, 
ईर्ष्या, निन्दा, मान, अपमान, सभी को पीना आया है 
पाप के पानी को संयम-२, क्रिया से सोंख लेंगे हम ||3||

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