गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023
(तर्ज : लाल दुपट्टा उड़ रहा है)
रोज तेरी तस्वीर सिरहाने रखकर सोते हैं।
यही सोचकर अपने दोनों नैन भिगोते हैं।
कभी तो तस्वीर से निकलोगे, कभी तो मेरे दादा पिघलोगे।।
अपनापन हो आँखों में, होंठो पे मुस्कान हो।
ऐसा मिलना जैसे, जन्मो-जन्मों की पहचान हो।
दादा मन मंदिर में बस जाओ।
दादा एक झलक... दिखलाते जाओ।
तेरे दरश को मेरी अंखियां तरसी जाए रे ।
यही सोचकर अपने दोनों हाथ बिछाते हैं।
जाने कब आ जाएगा, रोज ये अंगना बहारूं।
अपने इस छोटे से घर का कोना कोना सवारूं।
धड़कन में बसा लूँ.... आ जाओ।
अब झोली हमारी ... भर दोना।