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मांगु प्रभु दीक्षा हवे (दीक्षा स्तवन हिंदी & गुजराती)

(रचना : मुनिश्री जिनागमरत्न विजय)

 

हुं जागतो ने मांगतो, दीक्षा प्रभु मने आपजो,
खोटा पथे दोड्यो घणो, संयम पंथे मने स्थापजो,
करुं प्रभु हुं विनंती, संसार बंधन कापजो,
मांगु प्रभु दीक्षा हवे, मने हाथ जाली चलावजो…

कोने खबर क्यारे जीवन, आ चालतु अटकी जशे,
फ२-फर फरकती आंखडी, पलवारमां अटकी जशे,
मृत्यु बने उत्सव समु, जीवन एवुं बनावजो,
मांगु प्रभु…

जो तो प्रभु हुं श्रमणने, ने भाव त्यारे आवता,
निर्दोष राहे चालता, ते कर्मो सघळा बाळता,
एवो अनुपम वेष प्रभुजी, क्यारे मुजने आपशो,
मांगु प्रभु…

प्रभु आप पासे आवतो ने, आंखे अश्रु वहावतो,
दीक्षा मने जल्दी मळे, एना अभिग्रह धारतो,
संसारमां भटक्यो घणुं, आप मुजने उगारजो,
मांगु प्रभु…

पथ्थर मुकी दीवाल चणी, क्षणवारमां तुटी पडी,
मुज भावनाना स्तोत्रमां, चणजो प्रबु ना आ कडी,
वैराग्यमां झूमतो रहुं, ए भाव मुजने आपजो,
मांगु प्रभु…

जयन्त आशीष आपजो, संसारथी मने वारजो,
चारित्र गुणना उपवने, श्रुतज्ञानमां डुबाडजो,
जीनागमने स्पर्शवानी, शक्ति प्रभु मने आपजो,
मांगु प्रभु

 

(રચના : મુનિશ્રી જિનાગમરત્ન વિજય)

 

હું જાગતો ને માંગતો, દીક્ષા પ્રભુ મને આપજો,
ખોટા પથે દોડ્યો ઘણો, સંયમ પંથે મને સ્થાપજો,
કરું પ્રભુ હું વિનંતી, સંસાર બંધન કાપજો,
માંગુ પ્રભુ દીક્ષા હવે, મને હાથ જાલી ચલાવજો…

કોને ખબર ક્યારે જીવન, આ ચાલતુ અટકી જશે,
ફ૨-ફર ફરકતી આંખડી, પલવારમાં અટકી જશે,
મૃત્યુ બને ઉત્સવ સમુ, જીવન એવું બનાવજો,
માંગુ પ્રભુ…

જો તો પ્રભુ હું શ્રમણને, ને ભાવ ત્યારે આવતા,
નિર્દોષ રાહે ચાલતા, તે કર્મો સઘળા બાળતા,
એવો અનુપમ વેષ પ્રભુજી, ક્યારે મુજને આપશો,
માંગુ પ્રભુ…

પ્રભુ આપ પાસે આવતો ને, આંખે અશ્રુ વહાવતો,
દીક્ષા મને જલ્દી મળે, એના અભિગ્રહ ધારતો,
સંસારમાં ભટક્યો ઘણું, આપ મુજને ઉગારજો,
માંગુ પ્રભુ…

પથ્થર મુકી દીવાલ ચણી, ક્ષણવારમાં તુટી પડી,
મુજ ભાવનાના સ્તોત્રમાં, ચણજો પ્રબુ ના આ કડી,
વૈરાગ્યમાં ઝૂમતો રહું, એ ભાવ મુજને આપજો,
માંગુ પ્રભુ…

જયન્ત આશીષ આપજો, સંસારથી મને વારજો,
ચારિત્ર ગુણના ઉપવને, શ્રુતજ્ઞાનમાં ડુબાડજો,
જીનાગમને સ્પર્શવાની, શક્તિ પ્રભુ મને આપજો,
માંગુ પ્રભુ…

संयम पंथे विहार, संयम पंथे विहार…(दीक्षा स्तवन हिंदी & गुजराती)

(राग: मौला मेरे लेले मेरी जान)

 

(रचना: सागर शाह)

 

गुरु चरणमां मस्तक मारूं,
गुरु समर्पण जीवन मार,
गुरु शरण आतम आधार,
संयम पंथे विहार, संयम पंथे विहार…

पंच महाव्रत धारूं, पगपाळा चालु,
गुरु वचन तहत्ती, आणां शिर पर धारूं,
मुक्यो हाथ, गुरए मारा शिरे,
छूटे साथ, हवे ना लगीरे,
गुरु चरणमां मस्तक मारूं…

संयममां सुखछाया, राखुं न कायानी माया,
जयणा छे हितकारी, समजावे गुरुराया,
देखाड्यो छे दीवो जे, माता-पिताए,
चालवुं छे जीवन आखुं, एना अजवाळे,
गुरु चरणमां मस्तक मारूं…

 

(રાગ: મૌલા મેરે લેલે મેરી જાન)

(રચના: સાગર શાહ)

 

ગુરુ ચરણમાં મસ્તક મારૂં,
ગુરુ સમર્પણ જીવન માર,
ગુરુ શરણ આતમ આધાર,
સંયમ પંથે વિહાર, સંયમ પંથે વિહાર…

પંચ મહાવ્રત ધારૂં, પગપાળા ચાલુ,
ગુરુ વચન તહત્તી, આણાં શિર પર ધારૂં,
મુક્યો હાથ, ગુરએ મારા શિરે,
છૂટે સાથ, હવે ના લગીરે,
ગુરુ ચરણમાં મસ્તક મારૂં…

સંયમમાં સુખછાયા, રાખું ન કાયાની માયા,
જયણા છે હિતકારી, સમજાવે ગુરુરાયા,
દેખાડ્યો છે દીવો જે, માતા-પિતાએ,
ચાલવું છે જીવન આખું, એના અજવાળે,
ગુરુ ચરણમાં મસ્તક મારૂં…

धन – धन ते मुनिवरा(दीक्षा स्तवन हिंदी & गुजराती)

धन – धन ते मुनिवरा रे, जे जिनआणा पाळे,
राग – द्वेषने दूर करीने, आतम शुद्धि साधे…
धन – धन मुनिवरा… धन – धन मुनिवरा…

गौतम स्वामी स्तवन 
गौतम स्वामी स्तवन 

वीर जिनेश्वर केरो शिष्य, 

गौतम नाम जपो निशदिन, 

महावीर प्रभु के निर्वाण की आरती 

जय जय जिनराया, स्वामी जय जय जिनराया । 

आरति करूं मन भाया, होय कंचन काया ॥ जय जय ॥

श्री गौतमस्वामी जी का रास 

श्री गौतमस्वामी जी का रास 

 

वीर जिणेसर चरण कमल, कमला कय वासो, 

पणमवि पभणिसुं सामीसाल, गोयम गुरु रासो 

मण तणु वयण एकंत करवि, निसुणहु भो भविया ॥ 

जिम निवसे तुम देह गेह गुण गण गहगहिया ॥ 1 ॥ 

 

जंबूदीव सिरि भरह खित्त, खोणी तल मंडण,

मगह देस सेणिय नरेश, रिऊ दल बल खंडण । 

धणवर गुब्वर गाम नाम, जिहां गुण गण सज्जा | 

विप्प वसे वसुभूइ तत्थ, तसु पुहवी भज्जा ॥ 2 ॥ 

 

ताण पुत्त सिरि इन्दभूइ, भूवलय पसिद्धो, 

चउदह विज्जा विविह रूव, नारी रस लुद्धो । 

विनय विवेक विचार सार, गुण गणह मनोहर || 

सात हाथ सुप्रमाण देह, रूवहि रंभावर ॥ 3 ॥ 

 

नयण वयण कर चरण जणवि, पंकज जल पाडिय, 

तेजहिं तारा चन्द सूर, आकाश भमाडिय । 

रूवहि मयण अनंग करवि, मेल्यो निरधाडिय ॥ 

धीरम मेरु गंभीर सिंधु, चंगम चय चाडिय ॥ 4 ॥ 

 

पेक्खवि निरुवम रूव जास, जण जंपे किंचिय, 

एकाकी किल भित्त इत्थ, गुण मेल्या संचिय । 

अहवा निच्चय पुव्व जम्म, जिणवर इण अंचिय || 

रंभा पउमा गउरी गंग, रतिहां विधि वंचिय ॥ 5 ॥ 

 

नय बुध नय गुरु कविण कोय, जसु आगल रहियो, 

पंच सयां गुण पात्र छात्र, हींडे परवरियो । 

करय निरंतर यज्ञ करम, मिथ्यामति मोहिय || 

अणचल होसे चरम नाण, दंसणह विसोहिय ॥ 6 ॥ वस्तु ॥

 

जंबूदीव जंबूदीव भरह वासंमि, खोणीतल मंडण, मगह देस सेणिय 

नरेसर, वर गुब्बर गाम तिहां, विप्प बसे वसुभूइ सुन्दर । 

तसु पुहवि भज्जा, सयल गुण गण रूप निहाण || 

ताण पुत्त विज्जानिलो, गोयम अतिहि सुजाण ॥ 7 ॥ 

 

भास ॥ चरम जिणेसर केवलनाणी, चौविह संघ पइट्ठा जाणी। 

पावापुर सामी संपत्तो, चउविह देव निकायहिं जुत्तो ॥ 8 ॥ 

 

देवहि समवसरण तिहां कीजे, जिण दीठे मिथ्यामति छीजे । 

त्रिभुवन गुरु सिंहासन बेठा, ततखिण मोह दिगंत पइट्ठा ॥ 9 ॥ 

 

क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाठा जिम दिन चोरा। 

देव दुंदुभि आगासे बाजी, धरम नरेसर आव्यो गाजी ॥ 10 ॥ 

 

कुसुम वृष्टि विरचे तिहां देवा, चउसठ इंद्रज मांगे सेवा । 

चामर छत्र सिरोवरि सोहे, रूवहि जिनवर जग सहु मोहे ॥ 11 ॥ 

 

उपसम रसभर वर वरसंता, जोजन वाणि वखाण करंता । 

जाणवि वद्धमान जिन पाया, सुर नर किन्नर आवइ राया ॥12 ॥ 

 

कंत समोहिय झलहलकंता, गयण विमाणहि, रण रणकंता । 

पेक्खवि इन्दभूइ मन चिंते, सुर आवे अम यज्ञ हुवंते ॥ 13 ॥ 

 

तीर तरंडक जिम ते वहता, समवसरण पुहता गहगहिता । 

तो अभिमाने गोयम जंपे, इण अवसर कोपे तणु कंपे ॥ 14 ॥ 

 

मुढा लोक अजाण्युं बोले, सुर जाणंता इम कांई डोले । 

मो आगल कोई जाण भणीजे, मेरु अवर किम उपमा दीजे ॥ 15 वस्तु ॥ 

 

वीर जिणवर वीर जिणवर नाण सम्पन्न, 

पावापुर पत्त नाह संसार तारण सुरमहिय, 

तिहिं देवइ निम्महिय समवसरण बहु सुक्ख कारण, 

जिणवर जग उज्जोय करै, तेजहि कर दिनकार || 

सिंहासण सामी ठव्यो, हुओ तो जय जयकार ॥ 16 ॥ भास

 

तो चढियो घणमाण गजे, इन्द्रभूव तो, 

हुंकारो करी संचरिय, कवणसु जिनवर देवतो । 

जोजन भूमि समवसरण पेक्स्खवि प्रथमारंभ तो ॥ 

दह दिस देखे विबुध वधू, आवंति सुररंभ तो ॥ 17 || 

 

मणिमय तोरण दंड ध्वज, कोसीसे नवघाट तो, 

वहर विवर्जित जंतुगण, प्रातिहारिज आठ तो 

सुर नर किन्नर असुरवर, इंद्र इंद्राणी राय तो । 

चित्त चमक्किय चिंतवै ए, सेवंता प्रभु पाय तो ।। 18 ।। 

 

सहसकिरण सामी वीरजिण, पेखिय रूप विशाल तो,

यह असंभव संभव ए, साचो ए इजाल तो । 

तो बोलावई त्रिजग गुरु, इंद्रभूइ नामेण तो । 

श्रीमुख संसय सामीसवे, फेडे वेद पएण तो ।। 19 ।। 

 

मान मेलि मद ठेलि करी भगतिहिं नाम्यो सीस तो । 

पंच सयांसुं व्रत लियो ए गोयम पहिलो सीस तो । 

बंधव संजम सुणवि करी, अगनिभूइ आवेय तो ॥ 

नाम लेई आभास करे, ते पण प्रतिबोधेय तो ॥ 20 ॥ 

 

इण अनुक्रम गणहर रयण, थाप्या वीर इग्यार तो, 

तो उपदेशे भुवन गुरु, संयमशुं व्रत बारतो । 

बिहु उपवासे पारणो ए, आपणपे विहरंत तो ।। 

गोयम संजम जग सयल, जय जयकार करंत तो ॥ 21॥ वस्तु ॥ 

 

इंद्रभुइ इंद्रभूइ चढियो बहुमान, 

हुंकारो करि कंपतो, समवसरण पहुतो तुरंत । 

जे जे संसा सामि सवे, चरम नाह फेडे फुरंत,

बोधि बीज संजाय मने, गोयम भवहि विरत्त, 

दिक्खा लेई सिक्खा सही, गणहर पय संपत ॥22॥ भास ॥

 

आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमा पुण्य भरो, 

दीठा गोयम सामि, जो निय नयणे अमिय झरो । 

समवसरण मझार, जे जे संशय ऊपजे ए,

ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनि पवरो ॥ 23 ॥ 

 

जिहां जिहां दीजे दीख, तिहां तिहां केवल उपजे ए 

आप कनें अणहुंत, गोयम दीजे दान इम 

गुरु ऊपर गुरु भक्ति सामी गोयम 

उपनिय इण छण केवल नाण, रागज राखे रंग भरे ॥ 24 ॥ 

 

जो अष्टापद शैल, वंदे चढी चउवीस जिण, 

आतम लब्धिवसेण, चरमसरीरी सो य मुनि । 

इय देसणा निसुणेह, गोयम गणहर संचरिय । 

तापस पन्नर सएण, तो मुनि दीठो आवतो ए ।। 25 ॥

 

तप सोसिय निय अंग, अम्हा सगति न उपजे ऐ, 

किम चढसे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए । 

गिरुओ ए अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए

तो मुनि चढियो वेग, आलंबवि दिनकर किरण ॥ 26 ॥ 

 

कंचन मणि निप्पन्न, दंडकलस ध्वजवड सहिए, 

पेखवि परमाणन्द, जिणहर भरतेसर महिय 

निय निय काय प्रमाण, चिंहु दिसि संठिय जिणह बिंब, 

पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥ 27 ॥ 

 

वयर सामीनो जीव, तिर्यक जृंभक देव तिहां, 

प्रतिबोध्या पुंडरीक, कंडरिक अध्ययन भणी । 

वलता गोयम सामि, सवि तापस प्रतिबोध करे, 

लेई आपण साथ, चाले जिम जूथाधिपति ।। 28 ।।

 

खीर खांड घृत आणअमिय वूठ अंगूठ ठवे, 

गोयम एकण करावे पात्र, पारणो सवे 

पंच सयां शुभ भाव, उज्ज्वल भरियो खीर मिसे, 

साचा गुरु संयोग, कवल ते केवल रूप हुआ ॥ 29 ॥ 

 

पंच सया जिणनाह, समवसरण प्राकारत्रय, 

पेखवि केवल नाण, उप्पन्नो उज्जोय करे I 

जाणे जिणवि पीयूष, गाजंती घन मेघ जिम, 

जिनवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पंचसया ॥ 30 | वस्तु ॥ 

 

इण अनुकम इण अनुक्रम नाण सम्पन्न 

पन्नरसय परिवरियहरिय दुरिय जिणनाह बंदइ, 

जाणेवि जगगुरु वयण, तिहि नाण अप्पाण निंदइ । 

चरम जिनेसर इम भणे, गोयम म करिस खेउ, 

छेही जाय आपण सही, होस्या तुल्ला बेउ || 31 || भास ॥ 

 

सामियो ए वीर जिणन्द, पूनमचन्द जिम उल्लसिय, 

विहरियो ए भरह वासम्मि, वरस बहुत्तर संबसिय । 

ठवतो ए कणय पउमेण, पाय कमल संघे सहिय, 

आवियो ए नयनानंद, नयर पावापुर सुरमहिय ।। 32 ।। 

 

पेखियो ए गोयम सामि, देवसमा प्रतिबोध करे 

आपणो ए तिसला देवी, नंदन पुहतो परमपए ! 

वलतो ए देव आकाश, पेखवि जाण्यो जिण समे ए, 

तो मुनि ए मन विखवाद, नाद भेद जिम ऊपनो ए ॥ 33 ॥

 

इण समे ए सामिय देखी, आप कनासुं टालियो ए, 

जाणतो ए तिहुअण नाह, लोक विवहार न पालियो ए । 

अतिभलो ए, कीथलो सामि, जाण्यो केवल मांगसे ए, 

चिन्तव्यो ए बालक जेम, अहवा केडे लागसे ए ॥ 34 ॥

 

हुं किम ए वीर जिणन्द, भगतिहिं भोले भोलब्यो ए, 

आपणो ए ऊँचलो नेह, नाह न संपे साचव्यो ए 

साचो ए वीतराग, नेह न जेणे लालियो ए 

तिणसमे ए गोयमचित्त, राग वैरागे वालियो ए ॥ 35 ।। 

 

आवतो ए जो उल्लड, रहितो रागे साहियो ए, 

केवल ए नाण उप्पन्न, गोयम सहिज उमाहियो ए । 

तिहुअण ए जय जयकार, केवल महिमा सुर करे ए 

गणधरु ए करय बखाण, भविया भव जिम निस्तरे ए ॥ 36 ॥ वस्तु ॥ 

 

पढ़म गणहर पढ़म गणहर बरस पच्चास, 

गिहवासे संवसिय तीस बरस संजम विभूसिय, 

सिरि केवल नाण पुण, बार बरस तिहुअण नमंसिय, 

राजगृही नयरी उथ्यो, बाणवइ बरसाउ, 

सामी गोयम, गुणनिलो, होसे सिवपुर ठाउ ॥ 37 ॥ भास ॥ 

 

जिम सहकारे कोयल टहुके, जिम कुसुमावन परिमल महके, 

जिम चन्दन सौगन्ध निधि 

जिम गंगाजल लहरिया लहके, जिम कणयाचल तेजे झलके, 

तिम गोयम सोभाग निधि  ॥ 38 ॥

 

जिम मानसरोवर निवसे हंसा, जिम सुरतरु वर कणयवतंसा

जिम महुयर राजीव बने 

जिम रयणायर रयणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे || 

तिम    गोयम    गुरु  केवल   घने          ॥ 39 ॥  

 

पूनम निसि जिम ससियर सोहे, सुरतरु महिमा जिम जग मोहे, 

पूरब दिस जिम सहसकरो 

पंचानन जिम गिरिवर राजे, नरवई घर जिम मयगल गाजे 

तिम   जिन   सासन   मुनि   पवरो ॥   40    ॥ 

 

जिम गुरु तरुवर सोहे साखा, जिम उत्तम मुख मधुरि भाषा 

जिम वन के तकि  महमहे  ए 

जिम भूमिपति भुयबल चमके, जिम जिन मन्दिर घण्टा रणके, 

गोयम लब्धे गहगह्यो ए ॥   41    ॥  

 

चिन्तामणि कर चढियो आज, सुरतरु सारे वंछिय कान, 

कामकुम्भ सहु वशि हुआ ए 

कामगवी पूरे मन कामी, अष्ट महासिद्धि आवे धामी, 

सामी गोयम अणुसरो ए ॥   42    ॥ 

 

पणवक्खर पहिलो पभणीजे, माया बीजो श्रवण सुणीजे 

श्रीमती सोभा संभव  ए  

देवां पुर अरिहंत नमीजे, विनयपहु उवझाय थूणीजे 

इण  मंत्रे     गोयम   नमो       ए ॥   43   ॥  

 

पर घर वसतां काय करीजे, देस देसांतर काय भमीजे, 

कवण काज आयास करो   

प्रह ऊठी गोयम समरीजे, काज समग्गल ततखिण सीजे, 

नव निधि विलसे तिहां घरे ए ॥ 44 || 

 

चउदह सय बाहोत्तर वरसे, गोयम गणहर केवल दिवसे, 

कियो कवित्त उपगार परो 

आदिहिं मंगल ए पभणीजे, परव महोच्छव पहिलो दीजे 

रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥  45 ||

 

धन माता जिण उयरे धरियो, धन्य पिता जिण कुल अवतरियो, 

धन्य सुगुरु जिण दीखियो ए  

विनयवंत विद्या भण्डार, तसु गुण पुहवी न लब्भइ  पार 

वड जिम साखा विस्तरो ए  

गोयम सामीनो रास भणीजे, चउविह संघ रलियायत कीजे,

रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥   46   ॥  

 

कुंकुम चंदन छडो दिवरावो, माणक मोतीना चौक पुरावो, 

रयण       सिंहासण          बेसणो         ए           । 

तिहां बेसी गुरु देसना देसी, भविक जीवना काज सरेसी 

नित       नित            मंगल       करो         । 

श्री   संघ  उदय सकल   आनंद   करो   ॥   47   ॥  

 

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दीपावली स्तवन 

मारग देशक मोक्षनो रे केवल ज्ञान निधान । 

भाव दया सागर प्रभु रे पर उपगारी प्रधानो रे । 

“निर्वाण कल्याणक आरती" 

जय जगदीश्वर अति अलवेसर वीर प्रभु राया 

पतित 'उद्धरण भव भय भंजण बोध बीज पाया 

दीपावली की आरती

दीपावली की आरती 

 

जय जय जगदीश जिनेसर जग तारन राजा 

धन धन किरति तेरी इन्द्र करत बाजा 

जय जय अविकारा तुम जग आधारा 

आरती अमर उतारा भव आरती टारा। जय... 

 

षटकाय प्रति पालक अनुकंपा धारी 

निश्चय नय व्यवहारी भविजन निस्तारी । जय... 

 

मति श्रुति अवधि सहित तुम अंबोदर आए 

देव नर मंगल गाए पुष्पन वरसाए। जय... 

 

जन्म महोत्सव जाना चौसठ इन्द्रों ने 

प्रभु मुरति कर लीनी मेरू परवी ने। जय... 

 

क्षीरोदक हिम कल से योजन शत शत के 

जिन तनु लघु चित्त धर के कर धर सब तन के। जय... 

 

अन्तर्यामी जाना सब सुर मन तन की 

पद नख मेरू कंपाये भूसर जल धर की। जय... 

 

धड़ड़ धड़ड़ धूम गिरि धर के सुर गण सभी कंपे 

प्रभु कृत जान खमाये जय जय मुख जंपे । जय... 

 

आगम शक्ति जिन जाना प्रफुल्लित जल डारे 

सुरभि वस्त्र सब भूषण चमरू झपटा रे । जय...

 

धुंगि धुनि धपमप पामा दल धोकों भेरन झलकारे 

गुड़ड़ गुडड झांझां कठतारा नौवत सुर भारे। जय... 

 

ता थेई ता थेई सीच गण नाचे रिम झिम नूपूर का

 द्रुपद ताल सुर गावे आनन्द की बरखा। जय... 

 

या विधि सय जिनेन्द्रे सेवे जग नायक जाना 

अमृत उदय धन धन जिम नर भव जिम घट परवाना। जय... 

 

 

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जैन दीपावली पूजन
जैन दीपावली पूजन

 

जैन दीपावली पूजन 

पूजन की तैयारी व सामग्री

 

(1) पूजा हेतु श्री महावीर स्वामी, गौतम स्वामी, दादा गुरुदेव व 

सरस्वती, लक्ष्मी आदि की तस्वीरें, चाँदी के सिक्के (रुपानाणां)। 

 

(2) बाजोट-1, कलश-2, दीपक बड़ा-1, छोटा दीपक-1, धूपिया 1, 

कटोरी-2, मिट्टी के दिये, पंचामृत का कटोरा । 

 

(3) बहीखाते (आवश्यकतानुसार), कलमें, दवात आदि । 

 

(4) श्रीफल, अक्षत, कुकुं, शुद्धजल, केसर-चंदन, पुष्प, धूप, कपास, 

घी, मिठाईयाँ, फल, अखण्ड पान, लौंग, इलायची, मौली, कपूर, 

पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर, जल), लाल वस्त्र । 

 

(5) पूजन करने वालों को स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए। 

(6) शुभ मुहूर्त में तस्वीरें, नई बहियाँ, दस्तरी, कलमें (पेन) दवात 

आदि साफ किए हुए बाजोट पर पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापन 

करना चाहिए।

 

(7) इस पाटे के दाहिनी ओर घृत का दीपक बांई ओर धूप 

रखनी चाहिए।

 

पूजन विधि 

 

णमो अरिहंताणं 

णमो सिद्धाणं 

णमो आयरियाणं 

णमो उवज्झायाणं 

णमो लोए सव्व-साहूणं 

एसो पंच नमुक्कारों, सव्व पावप्पणासणो 

मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलम् ॥ 

 

पूजन करने वाले तीन नवकार गिनकर सर्वप्रथम अपनी कलाई 

में मौली बांधे। इसके बाद नवकार गिनते हुए कलश में मौली बांधकर, 

शुद्ध जल भरकर, नारियल में मौली बांधकर स्वास्तिक पर कलश स्थापन 

करें, और नवकार गिनते हुए ही कलम, दवात आदि में मौली बांधे। 

 

पंचामृत मे रुपानाणां को धोकर उन्हें एक रकाबी (प्लेट) में रखें। 

 

नई बही के प्रथम पन्ने पर कुकुं या चन्दन से बड़ा स्वास्तिक बनाकर निम्नानुसार लिखे -

॥ ॐ अर्हम् नमः ॥ 

 

श्री 

श्री   श्री 

श्री   श्री   श्री 

श्री   श्री   श्री   श्री

श्री    श्री    श्री    श्री    श्री 

श्री     श्री     श्री     श्री     श्री    श्री 

श्री     श्री     श्री     श्री     श्री     श्री     श्री 

श्री    श्री    श्री     श्री     श्री     श्री     श्री    श्री 

श्री    श्री    श्री    श्री     श्री    श्री     श्री     श्री    श्री 

 

श्री लाभ -            -श्री शुभ 

 

श्री पार्श्वनाथाय नमः ।    श्री महावीराय नमः । 

श्री सद्गुरूभ्यो नमः ।     श्री सरस्वत्यै नमः ॥ 

श्री लक्ष्मी देव्यै नमः । 

श्री श्री श्री श्री 

 

श्री गौतम स्वामीजी जैसी लब्धि हो। 

 

श्री केशरियाजी जैसा भंडार भरपूर हो । 

 

श्री भरत चक्रवर्तीजी जैसी पदवी हो । 

 

श्री अभयकुमारजी जैसी बुद्धि हो। 

 

श्री कवयन्नाजी सेठ जैसा सौभाग्य हो। 

श्री बाहुबली जी जैसा बल प्राप्त हो । 

श्री धन्ना-शालिभद्रजी जैसी ऋद्धि हो ।

श्री श्रंयांसकुमार जी जैसी दान वृत्ति हो । 

 

श्री वीर संवत् 25.. . विक्रम संवत् 20... शुभ मिति कार्तिक

बदी... वार. . तदनुसार तारीख ......  महिना. ……. सन् 20.... 

ईस्वी मुहूर्त ....  

 

इसके बाद उपरोक्त स्वस्तिक पर एक नागरबेल का अखंड पान 

रखें, उस पर सुपारी, इलायची, लौंग, रूपानाणा रख कर बही आदि के 

चारों ओर फिरती शुद्ध जलधारा देकर वासक्षेप अक्षत (चांवल) और 

पुष्प (फूल) मिश्रित (मिलाकर) कुसुमांजलि हाथ में लेकर नीचे लिखित 

श्लोक व मंत्र बोल कुसुमांजलि करना। 

 

 श्लोक 

मंगलम् भगवान वीरो, मंगलम् गौतम प्रभु । 

मंगलम् स्थूलभद्राद्या, जैनो धर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ 

 

मंत्र :  ॐ आर्यावर्ते अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्रे 

मध्य-खण्डे भारत देशे ...... राज्ये…………….नगरे 

मम गृहे श्री शारदा देवी, लक्ष्मीदेवी, आगच्छ - आगच्छ तिष्ठ - तिष्ठ 

स्वाहाः ॥

 

नोट : कुसुमांजलि करने के बाद हाथ जोड़कर एकाग्रचित्त से 

निम्नलिखित स्तुति बोलना चाहिये ।

 

 स्तुति

 

स्वः श्रियम् श्रीमद्ऽर्हन्तः, सिद्धाः सिद्धि पुरीपदम् । 

आचार्या : पंचाचार, वाचकां वाचनां वराम् ।।1।। 

साधवः सिद्धि साहाय्यं, वितन्वन्तु विवे किनाम् । 

मंगलानां च सर्वेषां, आद्यं भवति मंगलम् ||2|| 

अर्हमित्यक्षरं माया, बीजं च प्रणवाक्षरम् । 

एवं नाना स्वरुपं च, ध्येयं ध्यायन्ति योगिनः ।।3।। 

हृत्पद्यषोडशा, स्थापितं षोडशाक्षरम् 

परमेष्ठि स्तुतेर्बीज, ध्यायेदक्षरदं मुदा ||4|| 

मंत्राणामादिम मंत्रं, तन्त्रं विघ्नौद्य निग्रहे । 

ये स्मरन्ति सदैवैनं, ते भवन्ति जिन प्रभाः ।।5।। ॥4॥ 

 

नोट : इस स्तुति बालने के बाद नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलते हुए 

आठों द्रव्यों (जल, चंदन, केशर, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, 

नैवेद्य और फल) से आठ बार क्रमश : पूजन करना चाहिए। 

 

(1) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक 

प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “जलं” समर्पयामि स्वाहा ॥ 

 

(2) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक 

प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “चंदनं” समर्पयामि स्वाहाः ॥

(3) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक 

प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “पुष्पं” समर्पयामि स्वाहाः ॥ 

(4) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक 

प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्ये “धूपं” समर्पयामि स्वाहाः ॥ 

(5) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक 

प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “दीपं” समर्पयामि स्वाहाः ॥ 

(6) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक 

प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “अक्षतं” समर्पयामि स्वाहाः ॥

 (7) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक 

प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै "नैवेद्यं" समर्पयामि स्वाहाः ॥ 

(8) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक 

प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “फलं” समर्पयामि स्वाहाः ॥

 

 इसके पश्चात् जितने भी पूजक मौजूद हो सब खड़े होकर हाथ 

जोड़कर सरस्वती एवं लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें। 

 

अनुभूत सिद्ध सारस्वत स्तव 

 

सकल लोक सुसेवितपत्कजा, वर यशोर्जित शारदा कौमुदी । 

निखिल कल्मष नारान तत्परा, जयतु सा जगतां जननी सदा ॥1॥ 

कमल गर्भ विराजित मूघना, मणिकिरीट सुशोभित मस्तका । 

कनक कुंडल भूषित कर्णिका, जयतु सा जगतां जननी सदा ॥2॥

बसु हरिद्गज संस्नपितेश्वरी, विधृत सोमकला जगदीश्वरी । 

जलज पत्र समान विलोचना, जयतु सा जगतां जननी सदा ||3|| 

निजसुधैर्य जिताभर-भूधरा, निहित पुष्कर वृंदल सत्करा । 

सुदितार्क सहक्तनु बल्लिका, जयतु सा जगतां जननी सदा ||4|| 

विविध वांछित कामदुधाद्भुता, विशद पद्म हृदान्तर वासिनी । 

सुमतिसागर वर्धन चन्द्रिमा, जयतु सा जगतां जननी सदा ।।5।। 

 

               (द्रुतविलम्बितवृत्तम्) 

 

कमलराल विहङ्गमवाहना, सितदुकूल विभूषण भूषिता । 

प्रणतभूमिरुहामृत-सारिणी, प्रवरदेहविभावरधारिणी ||1|| 

अमृतपूर्ण कमण्डलुधारिणी त्रिदशदानव मानव सेविता । 

भगवती परमैव सरस्वती, मम पुनातु सदा नयनाम्बुजं ||2|| 

जिनपति प्रधिता खिलवाङ्गमयी, गणधराननमण्डपनर्त की । 

गुरुमुखाम्बु जखे लनहंसिका, विजयते जगति श्रुत देवता ||3|| 

अमृतदीधितिबिम्बसमाननां, त्रिजगतीजननिर्मितमाननाम् । 

नव-रसामृतवीचिसरस्वती, प्रमुदितः प्रणमामि सरस्वतीम् ||4|| 

विततके तक पत्रविलो चने, विहितसंसृतिदुषकृतमोचने । 

धवलपक्षविहङ्गमलांछिते, जय सरस्वती, पूरितवांछिते ॥5॥ 

भवदनुग्रहले शतरंगिताः, तदुचितं प्रवदन्ति विपश्चितः । 

नृपसभासु यतः कमलावला, कुचकला ललनानि वितन्वते ||6||

गतघना अपि हि त्वदनुग्रहात्, कलित कोमलवाक्यसुधोर्मयः । 

चकितबालकरंगविलोचना, जनमनांसि हरन्तितरां नराः ||7|| 

करसरोरुहखे लनचंचला, तवविभाति वराजपमालिका । 

श्रुतपयोनिधिमध्यविकस्वरो,ज्ज्वलतरंगकलाग्रह साग्रहा ॥8॥

द्विरद के सरिमारिभुजंगमा, सहनतस्करराजरुजांभयम् । 

तव गुणावलिगानतरंगिणां, न भविनां भवति श्रुतदेवये ||9||

 (सग्धरावृत्तम्) 

 

ॐ ह्रीं क्लीं ब्लीं ततः श्री तदनुहसल्क हीं अथो ऐं नमोऽन्ते । 

लक्षं साक्षाज्जपेघ : करसमविधिना सत्तषा ब्रह्मचारी ॥ 

निर्यान्तीं चन्द्रबिम्बात् कलयति मनसा त्वां जगच्चंद्रिमामम् । 

सोऽत्यर्थ वन्हिकु ण्डे विहितघृतदुतिः स्याद्दशांशेन विद्वान ||10|| 

(शार्दूलविक्रीडिवतृत्तम् )

 

 रें रे लक्षण-काव्य-नाटक-कथा-चम्पू-समालोकने । 

क्वायासं वितनोषि बालिश ! मुधा कि नमवक्त्राम्बुज ॥ 

भक्त्याऽराघय मंत्रराजमहसाऽनेनानिशं भारती । 

येन त्वं कविता - वितान-सविता द्वैत-प्रबुद्धायसे ॥11॥ 

चंचच्चन्द्रमुखी प्रसिद्ध महिमा स्वाच्छन्द्यराज्यप्रदा । 

नायासेन सुरासुरेश्वरगणैरम्यर्चिता भक्तितः ॥ 

देवी संस्तुतवैभवा मलयजा लेपांग-रागद्युतिः । 

सा मां पातु सरस्वती भगवती त्रैलोक्य संजीवनी ॥12॥ -

(द्रुतविलम्बितवृत्तम्) 

स्तवनमेतदनेकगुणान्वितं, पठति यो भविकः प्रमुदाः प्रगे। 

स सहसामधुरैर्वचनामृतै, नृपगणानपि रंजयति स्फुटम् ।।13।। 

 

श्री लक्ष्मी स्तोत्र 

 

नमोऽस्तुते महालक्ष्मी, महासौख्यप्रदायिनी । 

सर्वदा देहि मे द्रव्यं, दानाय मुक्ति हेतवे ।।1।। 

धनं धान्यं धरां हर्ष, कीर्तिमायुर्यशः श्रियम् । 

तुरंगान दंतिनः पुत्रान्, महालक्ष्मी प्रयच्छ मे ।।2।। 

यन्मया वांछितम् देवी, सत्सर्व सफलं कुरु । 

न बाध्यान्तां कुकर्माणि, संकटान्मे निवारय ||3|| 

                                                        ध्यान 

सुन्दर आरोग्य निवास करे दृढ़ तन में । 

आशा उत्साह उमंग भरे शुचि मन में ।।1।। 

हो अनुचित योग प्रयोग न धन साधन में । 

उत्कृष्ट उच्च आदर्श जगे जीवन में ।।2।। 

तम मिटे ज्ञान की ज्योति जगत में छाए । 

प्रभु ! दिव्य दीवाली भव्य भाव भर जाए ||3|| 

 

नोट : उपरोक्त स्तोत्र बोलने के बाद एक रकाबी (थाली) में दीपक 

और कपूर जाग्रत कर आरती उतारना चाहिए।

 

 

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