गुरुदेव ! तुम्हे नमस्कार बार बार हैं

श्रीचरण शरण से हुआ, जीवन सुधार है ।।गुरुदेव।। 

 

अज्ञान - तम हटाके ज्ञान ज्योति जगा दी

दृढ आत्मज्ञान में अखण्ड दृष्टी लगा दी

उपदेश सदाचार सकल शास्त्र सार हैं ।।गुरुदेव ॥१॥ 

 

विधियुक्त सिर झुका के कर रहे हैं वंदना 

अब हो रही मंगलमयी सध्वाव स्पन्दना

माधुर्य से मिटा रही मन का विकार है ।।गुरुदेव ॥२॥

 

यह है मनोरथ नित्य रहे संत चरण में

अन्तिम समय समाधि मरण चार शरण में

यह 'सुर्यचन्द्र' मोक्ष मार्ग में विहार हैं ।।गुरुदेव ॥ ३॥ 

- Stavan Manjari