जिन पार्श्वनाथ के सुमिरन से मिटता भव भव फेरा
है वंदन उनको मेरा
जिन पार्श्वनाथ के सुमिरन से मिटता भव भव फेरा
है वंदन उनको मेरा
मोरा पार्श्व प्रभु नल प्यार हो गया,
भइयों सच्ची मुच्ची, हो भइयों सच्ची मुच्ची
जो पारस को याद करें, वो लोग निराले होते हैं.
जो पारस का नाम पुकारे वो किस्मत बाले होते है
हे केशरिया पार्श्वप्रभु एक अरज सुनले ना
मुझमें जितने अवगुण है 2 बल्दी दूर कर देना
दरशन दो दरशन दो, इस आ तुम्हारे दर्शन को
बरसन दो बरसन दो, गुरूवाणी का अमृत बरसन दो
स्वरों की गीत माला में प्रभू गुणगान गाया है 2
चरणों में मस्तक को शरण जीनराज पाया है
चन्दन के दो चौकिये, फूलन के दो हार
केशार भारिया बाटको पुजों पारसनाथ। रे मनवा। ......