पार्श्व प्रभू से अरज् 

              तर्ज- जाते हो परदेश पिया 

 

हे केशरिया पार्श्वप्रभु एक अरज सुनले ना  

मुझमें जितने अवगुण है 2 बल्दी दूर कर देना 

 

जगभग 2 ज्योति बरसे झलके अमीरस धारा है 

रुप अनोपम नीरखी बिक से अंतरभाव हमारा है 

देव गुरु और धर्म की सेवा २ निशदिन पाऊँ 

                                                          ये ही मेवा          ॥१॥ 

 

करुणा सागर, करुणा निधान काया कंचन वाण तुम्हारी 

मन की आशा पुरी करना हे प्रभु मेरे अंतर्यामी 

रहे भावना ये ही मेरी २ होगी प्रभूजी कृपा तेरी                      ||२|| 

 

दूर दूर से यात्री आवे, दर्शन करके आनन्द पावे 

दर्शन पाकर वाम नन्दन कर्म कुटील मेरे मिट जावे 

युवक मंडल चरणों में तेरे २ बैठे हैं हम नॅन बिछाये    ॥३॥