स्वरचित

(तर्ज : स्वरचित) 

दादा देने वाले हैं, हम लेने वाले हैं 
आज खाली हाथ नही जाना, जिसे चाहिये वो हाथ उठाना 

रोज रोज माँगने का झंझट ही छोड़ दो-२ 
जिसको जितना चाहिये वो, आज मुख से बोल दो। 
आज अच्छा मौका है, किसने तुमको रोका है। 
बिल्कुल नहीं शरमाना... जिसे चाहिये ||1||

लाखों लाखों लेने वाले, दातारी एक हैं-२ 
पल में बदल देते, किस्मत की रेख है।
भक्त थोड़े ज्यादा हैं, देने वाले दादा हैं। 
सबसे पहले हाथ उठाना ... जिसे चाहिये ||2|| 

हाथ में ना आए तो, झोली पसार दो-२
खूब लेके जाना आज, दादा के दरबार से। 
झोली भर जाए तो काम बन जाएँगे। 
जैन मण्डल गुण गावे जिसे चाहिये ||3||