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श्री बाहुबली चालीसा

 

श्री बाहुबली चालीसा नमूं सदा नवदेवता, मन मंदिर में धार।

बाहुबली भगवान को, करके नमन हजार।।

पूजूं मन वच काय से, करता जय जयकार।

बाहुबली भगवान का, चालीसा सुखकार।।

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बाहुबली भगवान कहाते, भविजन चरणों में शीश झुकाते।

गोमटेश हे जय हो स्वामी, कामदेव पहले अभिरामि।।

आदिनाथ के राज दुलारे, मात सुनंदा के सुत प्यारे।

भरतेश्वर के तुम हो भ्राता, सब विद्याओं के ज्ञाता।।

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पोदनपुर स्वामी कहलाये, न्याय नीति से राज चलायें।

खेतों में आयी हरियाली, नगरी में छायी खुशहाली।।

नहीं अनीति को स्वीकारा, चाहे भ्राता रहे तिहारा।।

भरतेश्वर चक्री को जीता, बने आप फिर शिवपथ नेता।

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श्रमण दिगम्बर दिक्षा पायें, विंध्याचल पर्वत पर आये।

एक वर्ष तक ध्यान लगाया, तुमने केवल ज्ञान जगाया।।

वीतराग सर्वज्ञ हितैषी, केवलज्ञान हित उपदेशी।

तीन लोक आनंद प्रदाता, गोमटेश पद शीश झुकाता।।

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विंध्याचल पर प्रतिमा प्यारी, अखिल विश्व में सबसे न्यारी।

खड़गासन में आप खडे़ हो, पर्वत से भी आप बड़े हो।।

नील कमल सम लोचन प्यारे, चन्द्र वदन तुम जग उजियारे।

नासा दृष्टि छवि तुम्हारी, रुप दिगम्बर है मनहारी।।

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चम्पक कलियाँ जीते नासा, गोमटेश तुम पूरो आशा।

गज सुण्डासम भुजबल सोहे, कर्ण झूलते जन-मन मोहें।।

दर्शन करने लाखों आते, अपने निर्मल भाव बनाते।

भक्ति भाव जो दर्शन पाते, दुर्गतियों में कभी न जाते।।

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शुभ्र गगनसम निर्मल काया, गोमटेश हमको दो छाया।

कंठ शंख छवि जीत रहा हैं, हृदय उच्च हिमालय सा है।।

विंध्याचल पर चमक रहे हो, तप संयम से दमक रहे हो।

तन से लिपटी वृक्ष लतायें, कल्प भविजन फल पाये।।

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सुर सुरेन्द्र करते पद पूजा, पूजा सम फल नहीं दूजा।

जय-जय विषधर शरण प्रदाता, जय-जय भव्य जनों के त्राता।।

आशा तृष्णा के हो त्यागी, निर्मोही निःशल्य विरागी।

धन मकान आडम्बर छोड़ा, मोक्ष मार्ग से नाता जोड़ा।।

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बारह महिना अनशन धारा, साम्य भाव आतम विस्तारा।

महातपस्वी प्रतिमा योगी, चिदानंद चिन्मय सुख भोगी।।

अष्टापद पर्वत आये, घाति अघाति कर्म नशाये।

नित्य निरंजन आत्म स्वरुपी, ज्ञाता दृष्टा अरस अरुपी।।

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दीक्षा आदिनाथ से धारे, उनसे पहले मोक्ष पधारे।

पल-पल छिन छिन तुम्हें निहारुं, पल-पल छिन-छिन तुम्हें पुकारुं।।

यह चालीसा जो भी गाता, पढ़ें सुने मन भाव लगाता।

वह सातिशय पुण्य कमावें, सम्यग्दर्शन व्रत पा जावें।।

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इससे ऋद्धि सिद्धि होती, पुण्य उदय की वृद्धि होती।

अनपढ़ को विद्वान बनावें, निर्धन को धनवान बनावें।।

पुत्रहीन संतति सुख पावें, चिरंजीव सौभाग्य बढ़ावें।

श्रेष्ठ विभव रत्नत्रय पाता, सिद्धों की श्रेणी में आता।।

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उसके घर में आय, ऋद्धि सिद्धि सुख पाता।

संकट जाय पलाय, चालीसा जो नित पढे़।।

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