बुधवार, 11 अक्तूबर 2023
(तर्ज: मेरा जूता है जापानी...)
मेरे दादा की कहानी, कहती महरौली जुबानी।
सर पे ताज है मणि का, दूजे दादा की निशानी।।
विक्रमपुर का नन्हा बालक, दत्त शरण में आया-2
दीक्षा ले अल्पायु में ही, आचारज पद पाया-2
शोभा शासन की सुहानी, ऐसे थे वे ज्ञानी ध्यानी।।
सर पे ताज है ||1||
वीतराग की अमर देशना, जन-जन तक पहुँचाने-2
मायापुर नगरी में आए, धर्म की ज्योति जलाने-2
गूंजी महावीर की वाणीसुनकर तर गए लाखों प्राणी।।
सर पे ताज है ॥2॥
अंत समय को निकट जानकर, संघ को पास बुलाया-2
न देना मुझे बीच वास तुम, मणि का भेद बताया-2
छाई चहुँ ओर विरानी, सबकी आँखों में था पानी।।
सर पे ताज है ||3||
यही है मानक चौक जहाँ पर, गुरू की भस्म समाई - 2
बीचवास दे दिया रथी को, मॅणि फकीर ने पाई-2
झुककर चरणों में हर प्राणी, बोले जय-जय मणिधारी।।
सर पे ताज है ॥4॥