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चाँदी जैसा रंग

चाँदी जैसा रंग

(तर्ज : चाँदी जैसा रंग) 

गुरू भक्ति का रंग निराला, भक्ति रंग कमाल 
एक घड़ी रंग जाय, जो भी, तारे दीन दयाल ... टेर।।                 

जिस पर उनकी महर नजर हो, मन इच्छित फल पाय। 
इस दरबार में आने वाला, खाली हाथ न जाय। 
करूणा सागर करूणा करते, दीनन के प्रतिपाल। 
नतमस्तक हो इन चरणों में, कटते करमन जाल ||1|| 

महिमा अपरम्पार गुरु की, करले रे गुणगान। 
भक्ति में शक्ति अनुपम, पाये सच्चा ज्ञान। 
ध्यान लगाले ज्योति जलाले, वो ही है रखवाल 
चरण शरण में आने वाले, हो जाये निहाल ||2|| 

दरसन की अभिलाषा हो चाहे, कुछ भी ना हो पास। 
पूरी करते आस जो रखते, गुरुवर पे विश्वास । 
वीर जिनेश्वर अन्तर्यामी, जाने दिल का हाल। 
जैन परिषद कहता है, कुछ तो वक्त निकाल ||3|| 

है गहरे सागर में बेड़ा हमारा, दादा जिनदत्त सूरि देना सहारा।। 
बिजली का कोप अजमेर में हुआ, जन मन भयभीत कुछ देर में हुआ। 
बिजली को कर स्तंभित है सबको तारा..... 

सूरत में बिगड़ों की बिगड़ी बनी, अंधों को आँखों की दी रोशनी। 
युगप्रधान ने युग का जीवन सुधारा...... 

राजपुत्र को डसा भरूच में सांप ने, पर जहर घटा दिया वहाँ भी 
आपने। 

राजपुत्र ने पाया जीवन दुबारा ... 
विनती अपनी इतनी शरण गहो, कोई पीड़ित जन बेआसरा न हो। 
आपके बिना होगा, अब नहीं गुजारा..

प्यारे-प्यारे चंदा मामा, अजब है शान तुम्हारी। 
कभी तो मेरे अंगना में दादा को ला इक बारी। 

पहले दादा दत्तसूरि ने, चमत्कार दिखलाया। 
माता अंबिका देवी से, युगप्रधान पद पाया। 
बड़े ही भोले, बड़े ही पावन, दिव्य गुणों के धारी... 

दूजे दादा मणिधारी है, दिल्ली में बिराजे। 
रथी उठी नहीं देख बादशाह, वाहीं चरण पधरावे 
महरोली में धाम है इनका, महिमा इनकी भारी... 

प्रकट प्रभावी दादा श्री, जिन कुशल सूरि कहलाये 
समय सुंदर की नांव तिराकर अचरज तुरंत दिखाये। 
मालपुरा वाले के दर्शन, की आयी है अब बारी..... 

चौथे दादा चंद्रसूरिजी, बिलाड़ा में विराजे। 
अमावस्या को कर डाली, पूनम की उजियारी। 
बकरी भेद बताया दादा, काजी वश कर डाली

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