करो ने पार भवसागर,
तमारे द्वार आव्यो छु, (2)
तमारे द्वार आव्यो छु। (2)
करो स्वीकार महावीरा,
भक्तिनुं फूल लाव्यो छु, (2)
तमारे द्वार आव्यो छु. (4) ।। धृ.।।
तमे छो ज्ञान रत्नाकर,
तमे छो ध्यानना सागर।
जले छे ज्योत दुनियामां,
तमे छो दीप ज्योतिर्धर।
वहे छे प्रेमनी धारा,
शुद्धिनो भाव भाव्यो छु (2) ।।1।।
तमारे द्वार आव्यो छु. (4)
फूलथी पण अति कोमल,
तमारो भावनो उपवन।
रागनी आग ने ठारे,
तमारा ध्याननो सावन।
मने लागो तमे प्यारा,
मुक्तिनुं गीत गाव्यो छु (2) ।।2।।
तमारे द्वार आव्यो छु. (4)
अहिंसा मार्गनो वैभव,
भवोभव हे प्रभु मलजो।
धरूं छु प्रार्थना पुष्पो,
जरा मृत्यु जनम टलजो।
मणि आधार ने पामी, (2)
मनित भ्रमणा हराव्यो छु (2) ।।4।।
तमारे द्वार आव्यो छु. (4)
करो ने पार भवसागर,
तमारे द्वार आव्यो छु, (2)
तमारे द्वार आव्यो छु (4)
करो स्वीकार महावीरा,
भक्तिनुं फूल लाव्यो छु, (2)
तमारे द्वार आव्यो छु (2)
करो ने पार भवसागर,
तमारे द्वार आव्यो छु,
करो स्वीकार महावीरा,
भक्तिनुं फूल लाव्यो छु, (2)
तमारे द्वार आव्यो छु… (3)
Source - Swadhyay Suwas