जिस दिन दादा गुरु घर आयेंगे

(तर्ज : जहाँ डाल-डाल पर...) 

जिन शासन के उजियारे हो, मणिधारी चन्द्र सूरीश्वर, 
दर्शन दो आज दयाकर-2 
जिनदत्त सूरि के पटधारी, जैनों में एक प्रभाकर, 
दर्शन दो आज दयाकर-2।। 

गुरू मदनपाल महाराजा को, तुमने ही दी थी दीक्षा। 
प्रचार कराया जैन धर्म का, सच्ची दी थी शिक्षा - 2 
यहां त्याग और तप संयम का उपदेश दिया समझाकर ||1|| 

था अलौकिक वो चमत्कार, जो रथी न उठने पाई। 
तब हुआ प्रभावित बादशाह, मिल महिमा सबने गाई- 2
यह महरौली की दादाबाड़ी, वही धरा है मनहर ||2|| 

हम नत मस्तक हो चरण कमल में श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ। 
है कोटि-कोटि उपकार संघ पे, कभी भूल न पाएं- 2। 
चहुं गूंज रही जयकार तुम्हारी, आज विश्व में गुरुवर ||3||

पलके ही पलके बिछायेंगे, जिस दिन दादा गुरु घर आयेंगे 
हम तो हैं दादा के, जनमों से दिवाने रे। 
मीठे मीठे भजन सुनायेंगे, जिस दिन दादा गुरु घर आयेंगे। 

घर का कोना-कोना मैंने, फूलों से सजाया। 
बंधन द्वार बंधाया, घी का दीप जलाया। 
प्रेमी जनों को बुलायेंगे, जिस दिन दादा गुरु घर आयेंगे ||1|| 

गंगा जल की झारी, गुरू के चरण पखाऊँ। 
भोग लगाऊँ लाड लडाऊँ, आरती उतारूँ । 
खुशबू ही खुशबू उड़ायेंगे, जिस दिन दादा गुरु घर आयेंगे ||2|| 

अब तो लगन एक ही दादा, प्रेम सुधा बरसा दो। 
जनम-जनम की मैली चादर, अपने रंग रंगा दो। 
जीवन को सफल बनायेंगे, जिस दिन दादा गुरु घर आयेंगे ||3||