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Dada Gurudev Iktisa

श्री गुरुदेव दयाल को, मन में ध्यान लगाए,
अष्टसिद्धि नवनिधि मिले, मनवांछित फल पाए ||

श्री गुरु चरण शरण में आयो, देख दरश मन अति सुख पायो
दत्त नाम दुःख भंजन हारा, बिजली पात्र तले धरनारा ||

उपशम रस का कंद कहावे, जो सुमिरे फल निश्चय पावे
दत्त संपत्ति दातार दयालु, निज भक्तन के हैं प्रतिपालु ||

बावन वीर किए वश भारी, तुम साहिब जग में जयकारी
जोगणी चौंसठ वश कर लीनी, विद्या पोथी प्रकट कीनी  ||

पांच पीर साधे बल कारी, पंच नदी पंजाब मजारी
अंधो की आंखें तुम खोली, गूंगों को दे दीनी बोली ||

गुरु वल्लभ के पाठ विराजो, सूरिन में सूरज सम साज़ो
जग में नाम तुम्हारो कहिए, परतिख सुर तरु सम सुख लहिये ||

इष्ट देव मेरे गुरुदेवा, गुणी जन मुनि जन करते सेवा
तुम सम और देव नहीं कोई, जो मेरे हित कारक होई ||

तुम हो सुर तरु वाँछित दाता, मैं निशदिन तुम्हरे गुण गाता
पार ब्रह्म गुरु हो परमेश्वर, अलख निरंजन तुम जगदीश्वर ||

तुम गुरु नाम सदा सुख दाता, जपत पाप कोटि कट जाता
कृपा तुम्हारी जिन पर होई, दुःख कष्ट नहीं पावे सोई ||

अभय दान दाता सुखकारी, परमातम पूरण ब्रह्मचारी
महा शक्ति बल बुद्धि विधाता, मैं नित उठ गुरु तुम्हें मनाता ||

तुम्हारी महिमा है अति भारी, टूटी नाव नई कर डारी 
देश देश में थंभ तुम्हारा, संग सकल के हो रखवाला ||

सर्व सिद्धि निधि मंगल दाता, देवपरी सब शीश नमाता
सोमवार पूनम सुखकारी, गुरु दर्शन आवे नर नारी ||

गुरु छलने को किया विचारा, श्राविका रूप जोगणी धारा
कीली उज्जयनी मझधारा, गुरु गुण अगणित किया विचारा ||

हो प्रसन्न दीने वरदाना, सात जो पसरे महि दरम्याना
युग प्रधान पद जनहित कारा, अंबड मान चूर्ण कर डारा ||

माता अंबिका प्रकट भवानी, मंत्र कलाधारी गुरु ज्ञानी
मुग़ल पूत को तुरत जिलाया, लाखों जन को जैन बनाया ||

दिल्ली में पतशाह बुलावे, गुरु अहिंसा ध्वज फहरावे
भादो चौदस स्वर्ग सिधारे, सेवक जन के संकट टारे ||

पूजे दिल्ली में जो ध्यावे, संकट नहीं सपने में आवे
ऐसे दादा साहब मेरे, हम चाकर चरणन के चेरे ||

निशदिन भैरु गोरे काले, हाजिर हुकुम खड़े रखवाले
कुशल करण लीनो अवतारा, सतगुरु मेरे सानिध कारा ||

डूबती जहाज भक्त की तारी, पंखी रूप धर्यो हितकारी
संग अचंभा मन में लावे, गुरु तब शुभ व्याख्यान सुनावे ||

गुरु वाणी सुन सब हरखावे, गुरु भव तारण तरण कहावे
समय सुंदर की पंच नदी में, फट गई जहाज नई की छिण में ||

अब है सदगुरु मेरी बारी, मुझे सम पतित ना और भिखारी
श्री जिन चंद्र सूरी महाराजा, चौरासी गच्छ के सिर ताजा ||

अकबर को अभक्ष्य छुड़ायो, अमावस को चांद उगायो
भट्टारक पद नाम धरावे, जय जय जय जय गुणी जन गावे ||

लक्ष्मी लीला करती आवे, भूखा भोजन आन खिलावे
प्यासे भक्त को नीर पिलावे, जल धर उण वेला ले आवे ||

अमृत जैसा जल बरसावे, कभी काल नहीं पड़ने पावे
अन धन से भरपूर बनावे, पुत्र-पौत्र बहू संपत्ति पावे ||

चामर युगल ढुले सुखकारी, छत्र किरणिया शोभा भारी
राजा राणा शीश नमावे, देव परी सब ही गुण गावे ||

पूरब पश्चिम दक्षिण तांईं, उत्तर सर्व दिशा के माहीं
ज्योति जागती सदा तुम्हारी, कल्पतरु सतगुरु गण धारी ||

श्री विजय इंद्र सूरीश्वर राजे, छड़ी दार सेवक संघ साजे
जो यह गुरु इकतीसा गावे, सुंदर लक्ष्मी लीला पावे ||

जो यह पाठ करे चित लाई, सतगुरु उनके सदा सहाई
वार एक सौ आठ जो गावे, राजदंड बंधन कट जावे ||

संवत आठ दोय हज्जारा, आसो तेरस शुक्करवारा
शुभ मुहूर्त वर सिंह लग्न में, पूरण कीनो बैठ मगन में ||

सतगुरु का स्मरण करे, धरे सदा जो ध्यान
प्रातः उठी पहिले पढ़े, होय कोटी कल्याण ||

सुनो रतन चिंतामणि, सतगुरु देव महान
वंदन श्री गोपाल का, लीजे विनय विधान ||

चरण शरण में मैं रहूं, रखियो मेरा ध्यान
भूल चूक माफी करो, हे मेरे भगवान ||


Source - Dada Gurudev Iktisa

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