(तर्ज- तेरे द्वार खड़ा भगवान)

श्री पार्श्व नाथ भगवान 
अरज सुनले ना मोरी 
हो अरज सुन लेना मोरी, 
मेरे पूरे करो अरमान
कि निशदिन करू तुम्हारा ध्यान, ॥1॥

जीवन की राहो पर चल रहा,
में राही अलबेला,
कभी सुखो का कभी दुखो का, 
देख रहा हूँ मेला रें 
प्रभु तुम हो शक्तिमान मुझे भी देना 
तू मुक्ति दान       ॥2॥

एक ओर हैं टूटी झोपड़ी, 
एक महल है भारी , 
एक बना नगरी का राजा, 
एकवना भिखारी रे 
है कर्म बड़ा बलवान 
की  कोई कर न सके पहिचान ॥3॥