शुक्रवार, 25 अगस्त 2023
आणी मनशुद्ध आस्ता, देव जुहारु शास्वता,
पार्श्वनाथ मनवांछितपुर, चितामणि म्हारी चिता चूर ॥१॥
अणयाली तोरी आंखड़ी, जाणे कमलतणी पांखड़ी
मुख दीठा दुख जावे दूर ------- चिंतामणि ||२||
को कहने को कहने नमे, म्हारामन मां तू ही जगमे
सदा जुहारु उंगते सूर ------- चिंतामणि ||३||
बिछड़िया बाल्हेसर मेल, बैरी - दुश्मन पाछा ठेल।
तुं छे म्हारा हाजरा हजूर ------- चिंतामणि ॥४॥
एह स्त्रोत जे मन में धरे, तेहना काज सदाइ सरे।
आधि व्याधि दुःख जावे दूर ------- चिंतामणि ॥५॥
मुझ मन लागी तुमसूं प्रीत, दूजो कोय न आवे चित।
कर मुझ तेज प्रताप प्रचुर ------- चिंतामणि ॥६॥
भव २ देजे तुम पद सेव श्री चिंतामणि अरिहंत देव।
"समय-सुन्दर" कहे गुण भरपूर ------- चिंतामणि ||७||
- प्रकाशक- तेजकरण मरोठी, हिंगनघाट.