मारग देशक मोक्षनो रे केवल ज्ञान निधान ।
भाव दया सागर प्रभु रे पर उपगारी प्रधानो रे ।
मारग देशक मोक्षनो रे केवल ज्ञान निधान ।
भाव दया सागर प्रभु रे पर उपगारी प्रधानो रे ।
दीपावली की आरती
जय जय जगदीश जिनेसर जग तारन राजा
धन धन किरति तेरी इन्द्र करत बाजा
जय जय अविकारा तुम जग आधारा
आरती अमर उतारा भव आरती टारा। जय...
षटकाय प्रति पालक अनुकंपा धारी
निश्चय नय व्यवहारी भविजन निस्तारी । जय...
मति श्रुति अवधि सहित तुम अंबोदर आए
देव नर मंगल गाए पुष्पन वरसाए। जय...
जन्म महोत्सव जाना चौसठ इन्द्रों ने
प्रभु मुरति कर लीनी मेरू परवी ने। जय...
क्षीरोदक हिम कल से योजन शत शत के
जिन तनु लघु चित्त धर के कर धर सब तन के। जय...
अन्तर्यामी जाना सब सुर मन तन की
पद नख मेरू कंपाये भूसर जल धर की। जय...
धड़ड़ धड़ड़ धूम गिरि धर के सुर गण सभी कंपे
प्रभु कृत जान खमाये जय जय मुख जंपे । जय...
आगम शक्ति जिन जाना प्रफुल्लित जल डारे
सुरभि वस्त्र सब भूषण चमरू झपटा रे । जय...
धुंगि धुनि धपमप पामा दल धोकों भेरन झलकारे
गुड़ड़ गुडड झांझां कठतारा नौवत सुर भारे। जय...
ता थेई ता थेई सीच गण नाचे रिम झिम नूपूर का
द्रुपद ताल सुर गावे आनन्द की बरखा। जय...
या विधि सय जिनेन्द्रे सेवे जग नायक जाना
अमृत उदय धन धन जिम नर भव जिम घट परवाना। जय...
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जैन दीपावली पूजन
पूजन की तैयारी व सामग्री
(1) पूजा हेतु श्री महावीर स्वामी, गौतम स्वामी, दादा गुरुदेव व
सरस्वती, लक्ष्मी आदि की तस्वीरें, चाँदी के सिक्के (रुपानाणां)।
(2) बाजोट-1, कलश-2, दीपक बड़ा-1, छोटा दीपक-1, धूपिया 1,
कटोरी-2, मिट्टी के दिये, पंचामृत का कटोरा ।
(3) बहीखाते (आवश्यकतानुसार), कलमें, दवात आदि ।
(4) श्रीफल, अक्षत, कुकुं, शुद्धजल, केसर-चंदन, पुष्प, धूप, कपास,
घी, मिठाईयाँ, फल, अखण्ड पान, लौंग, इलायची, मौली, कपूर,
पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर, जल), लाल वस्त्र ।
(5) पूजन करने वालों को स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनने चाहिए।
(6) शुभ मुहूर्त में तस्वीरें, नई बहियाँ, दस्तरी, कलमें (पेन) दवात
आदि साफ किए हुए बाजोट पर पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापन
करना चाहिए।
(7) इस पाटे के दाहिनी ओर घृत का दीपक बांई ओर धूप
रखनी चाहिए।
पूजन विधि
णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्व-साहूणं
एसो पंच नमुक्कारों, सव्व पावप्पणासणो
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलम् ॥
पूजन करने वाले तीन नवकार गिनकर सर्वप्रथम अपनी कलाई
में मौली बांधे। इसके बाद नवकार गिनते हुए कलश में मौली बांधकर,
शुद्ध जल भरकर, नारियल में मौली बांधकर स्वास्तिक पर कलश स्थापन
करें, और नवकार गिनते हुए ही कलम, दवात आदि में मौली बांधे।
पंचामृत मे रुपानाणां को धोकर उन्हें एक रकाबी (प्लेट) में रखें।
नई बही के प्रथम पन्ने पर कुकुं या चन्दन से बड़ा स्वास्तिक बनाकर निम्नानुसार लिखे -
॥ ॐ अर्हम् नमः ॥
श्री
श्री श्री
श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री
श्री लाभ - -श्री शुभ
श्री पार्श्वनाथाय नमः । श्री महावीराय नमः ।
श्री सद्गुरूभ्यो नमः । श्री सरस्वत्यै नमः ॥
श्री लक्ष्मी देव्यै नमः ।
श्री श्री श्री श्री
श्री गौतम स्वामीजी जैसी लब्धि हो।
श्री केशरियाजी जैसा भंडार भरपूर हो ।
श्री भरत चक्रवर्तीजी जैसी पदवी हो ।
श्री अभयकुमारजी जैसी बुद्धि हो।
श्री कवयन्नाजी सेठ जैसा सौभाग्य हो।
श्री बाहुबली जी जैसा बल प्राप्त हो ।
श्री धन्ना-शालिभद्रजी जैसी ऋद्धि हो ।
श्री श्रंयांसकुमार जी जैसी दान वृत्ति हो ।
श्री वीर संवत् 25.. . विक्रम संवत् 20... शुभ मिति कार्तिक
बदी... वार. . तदनुसार तारीख ...... महिना. ……. सन् 20....
ईस्वी मुहूर्त ....
इसके बाद उपरोक्त स्वस्तिक पर एक नागरबेल का अखंड पान
रखें, उस पर सुपारी, इलायची, लौंग, रूपानाणा रख कर बही आदि के
चारों ओर फिरती शुद्ध जलधारा देकर वासक्षेप अक्षत (चांवल) और
पुष्प (फूल) मिश्रित (मिलाकर) कुसुमांजलि हाथ में लेकर नीचे लिखित
श्लोक व मंत्र बोल कुसुमांजलि करना।
श्लोक
मंगलम् भगवान वीरो, मंगलम् गौतम प्रभु ।
मंगलम् स्थूलभद्राद्या, जैनो धर्मोऽस्तु मंगलम् ॥
मंत्र : ॐ आर्यावर्ते अस्मिन् जम्बुद्वीपे दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्रे
मध्य-खण्डे भारत देशे ...... राज्ये…………….नगरे
मम गृहे श्री शारदा देवी, लक्ष्मीदेवी, आगच्छ - आगच्छ तिष्ठ - तिष्ठ
स्वाहाः ॥
नोट : कुसुमांजलि करने के बाद हाथ जोड़कर एकाग्रचित्त से
निम्नलिखित स्तुति बोलना चाहिये ।
स्तुति
स्वः श्रियम् श्रीमद्ऽर्हन्तः, सिद्धाः सिद्धि पुरीपदम् ।
आचार्या : पंचाचार, वाचकां वाचनां वराम् ।।1।।
साधवः सिद्धि साहाय्यं, वितन्वन्तु विवे किनाम् ।
मंगलानां च सर्वेषां, आद्यं भवति मंगलम् ||2||
अर्हमित्यक्षरं माया, बीजं च प्रणवाक्षरम् ।
एवं नाना स्वरुपं च, ध्येयं ध्यायन्ति योगिनः ।।3।।
हृत्पद्यषोडशा, स्थापितं षोडशाक्षरम्
परमेष्ठि स्तुतेर्बीज, ध्यायेदक्षरदं मुदा ||4||
मंत्राणामादिम मंत्रं, तन्त्रं विघ्नौद्य निग्रहे ।
ये स्मरन्ति सदैवैनं, ते भवन्ति जिन प्रभाः ।।5।। ॥4॥
नोट : इस स्तुति बालने के बाद नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलते हुए
आठों द्रव्यों (जल, चंदन, केशर, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत,
नैवेद्य और फल) से आठ बार क्रमश : पूजन करना चाहिए।
(1) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक
प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “जलं” समर्पयामि स्वाहा ॥
(2) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, केवलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक
प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “चंदनं” समर्पयामि स्वाहाः ॥
(3) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक
प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “पुष्पं” समर्पयामि स्वाहाः ॥
(4) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक
प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्ये “धूपं” समर्पयामि स्वाहाः ॥
(5) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक
प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “दीपं” समर्पयामि स्वाहाः ॥
(6) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक
प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “अक्षतं” समर्पयामि स्वाहाः ॥
(7) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक
प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै "नैवेद्यं" समर्पयामि स्वाहाः ॥
(8) ॐ ह्रीं श्री भगवत्यै, के वलज्ञान स्वरुपायै, लोकालोक
प्रकाशिकायै, सरस्वत्यै, लक्ष्मीदेव्यै “फलं” समर्पयामि स्वाहाः ॥
इसके पश्चात् जितने भी पूजक मौजूद हो सब खड़े होकर हाथ
जोड़कर सरस्वती एवं लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें।
अनुभूत सिद्ध सारस्वत स्तव
सकल लोक सुसेवितपत्कजा, वर यशोर्जित शारदा कौमुदी ।
निखिल कल्मष नारान तत्परा, जयतु सा जगतां जननी सदा ॥1॥
कमल गर्भ विराजित मूघना, मणिकिरीट सुशोभित मस्तका ।
कनक कुंडल भूषित कर्णिका, जयतु सा जगतां जननी सदा ॥2॥
बसु हरिद्गज संस्नपितेश्वरी, विधृत सोमकला जगदीश्वरी ।
जलज पत्र समान विलोचना, जयतु सा जगतां जननी सदा ||3||
निजसुधैर्य जिताभर-भूधरा, निहित पुष्कर वृंदल सत्करा ।
सुदितार्क सहक्तनु बल्लिका, जयतु सा जगतां जननी सदा ||4||
विविध वांछित कामदुधाद्भुता, विशद पद्म हृदान्तर वासिनी ।
सुमतिसागर वर्धन चन्द्रिमा, जयतु सा जगतां जननी सदा ।।5।।
(द्रुतविलम्बितवृत्तम्)
कमलराल विहङ्गमवाहना, सितदुकूल विभूषण भूषिता ।
प्रणतभूमिरुहामृत-सारिणी, प्रवरदेहविभावरधारिणी ||1||
अमृतपूर्ण कमण्डलुधारिणी त्रिदशदानव मानव सेविता ।
भगवती परमैव सरस्वती, मम पुनातु सदा नयनाम्बुजं ||2||
जिनपति प्रधिता खिलवाङ्गमयी, गणधराननमण्डपनर्त की ।
गुरुमुखाम्बु जखे लनहंसिका, विजयते जगति श्रुत देवता ||3||
अमृतदीधितिबिम्बसमाननां, त्रिजगतीजननिर्मितमाननाम् ।
नव-रसामृतवीचिसरस्वती, प्रमुदितः प्रणमामि सरस्वतीम् ||4||
विततके तक पत्रविलो चने, विहितसंसृतिदुषकृतमोचने ।
धवलपक्षविहङ्गमलांछिते, जय सरस्वती, पूरितवांछिते ॥5॥
भवदनुग्रहले शतरंगिताः, तदुचितं प्रवदन्ति विपश्चितः ।
नृपसभासु यतः कमलावला, कुचकला ललनानि वितन्वते ||6||
गतघना अपि हि त्वदनुग्रहात्, कलित कोमलवाक्यसुधोर्मयः ।
चकितबालकरंगविलोचना, जनमनांसि हरन्तितरां नराः ||7||
करसरोरुहखे लनचंचला, तवविभाति वराजपमालिका ।
श्रुतपयोनिधिमध्यविकस्वरो,ज्ज्वलतरंगकलाग्रह साग्रहा ॥8॥
द्विरद के सरिमारिभुजंगमा, सहनतस्करराजरुजांभयम् ।
तव गुणावलिगानतरंगिणां, न भविनां भवति श्रुतदेवये ||9||
(सग्धरावृत्तम्)
ॐ ह्रीं क्लीं ब्लीं ततः श्री तदनुहसल्क हीं अथो ऐं नमोऽन्ते ।
लक्षं साक्षाज्जपेघ : करसमविधिना सत्तषा ब्रह्मचारी ॥
निर्यान्तीं चन्द्रबिम्बात् कलयति मनसा त्वां जगच्चंद्रिमामम् ।
सोऽत्यर्थ वन्हिकु ण्डे विहितघृतदुतिः स्याद्दशांशेन विद्वान ||10||
(शार्दूलविक्रीडिवतृत्तम् )
रें रे लक्षण-काव्य-नाटक-कथा-चम्पू-समालोकने ।
क्वायासं वितनोषि बालिश ! मुधा कि नमवक्त्राम्बुज ॥
भक्त्याऽराघय मंत्रराजमहसाऽनेनानिशं भारती ।
येन त्वं कविता - वितान-सविता द्वैत-प्रबुद्धायसे ॥11॥
चंचच्चन्द्रमुखी प्रसिद्ध महिमा स्वाच्छन्द्यराज्यप्रदा ।
नायासेन सुरासुरेश्वरगणैरम्यर्चिता भक्तितः ॥
देवी संस्तुतवैभवा मलयजा लेपांग-रागद्युतिः ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती त्रैलोक्य संजीवनी ॥12॥ -
(द्रुतविलम्बितवृत्तम्)
स्तवनमेतदनेकगुणान्वितं, पठति यो भविकः प्रमुदाः प्रगे।
स सहसामधुरैर्वचनामृतै, नृपगणानपि रंजयति स्फुटम् ।।13।।
श्री लक्ष्मी स्तोत्र
नमोऽस्तुते महालक्ष्मी, महासौख्यप्रदायिनी ।
सर्वदा देहि मे द्रव्यं, दानाय मुक्ति हेतवे ।।1।।
धनं धान्यं धरां हर्ष, कीर्तिमायुर्यशः श्रियम् ।
तुरंगान दंतिनः पुत्रान्, महालक्ष्मी प्रयच्छ मे ।।2।।
यन्मया वांछितम् देवी, सत्सर्व सफलं कुरु ।
न बाध्यान्तां कुकर्माणि, संकटान्मे निवारय ||3||
ध्यान
सुन्दर आरोग्य निवास करे दृढ़ तन में ।
आशा उत्साह उमंग भरे शुचि मन में ।।1।।
हो अनुचित योग प्रयोग न धन साधन में ।
उत्कृष्ट उच्च आदर्श जगे जीवन में ।।2।।
तम मिटे ज्ञान की ज्योति जगत में छाए ।
प्रभु ! दिव्य दीवाली भव्य भाव भर जाए ||3||
नोट : उपरोक्त स्तोत्र बोलने के बाद एक रकाबी (थाली) में दीपक
और कपूर जाग्रत कर आरती उतारना चाहिए।
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