श्री गौतमस्वामी जी का रास
वीर जिणेसर चरण कमल, कमला कय वासो,
पणमवि पभणिसुं सामीसाल, गोयम गुरु रासो
मण तणु वयण एकंत करवि, निसुणहु भो भविया ॥
जिम निवसे तुम देह गेह गुण गण गहगहिया ॥ 1 ॥
जंबूदीव सिरि भरह खित्त, खोणी तल मंडण,
मगह देस सेणिय नरेश, रिऊ दल बल खंडण ।
धणवर गुब्वर गाम नाम, जिहां गुण गण सज्जा |
विप्प वसे वसुभूइ तत्थ, तसु पुहवी भज्जा ॥ 2 ॥
ताण पुत्त सिरि इन्दभूइ, भूवलय पसिद्धो,
चउदह विज्जा विविह रूव, नारी रस लुद्धो ।
विनय विवेक विचार सार, गुण गणह मनोहर ||
सात हाथ सुप्रमाण देह, रूवहि रंभावर ॥ 3 ॥
नयण वयण कर चरण जणवि, पंकज जल पाडिय,
तेजहिं तारा चन्द सूर, आकाश भमाडिय ।
रूवहि मयण अनंग करवि, मेल्यो निरधाडिय ॥
धीरम मेरु गंभीर सिंधु, चंगम चय चाडिय ॥ 4 ॥
पेक्खवि निरुवम रूव जास, जण जंपे किंचिय,
एकाकी किल भित्त इत्थ, गुण मेल्या संचिय ।
अहवा निच्चय पुव्व जम्म, जिणवर इण अंचिय ||
रंभा पउमा गउरी गंग, रतिहां विधि वंचिय ॥ 5 ॥
नय बुध नय गुरु कविण कोय, जसु आगल रहियो,
पंच सयां गुण पात्र छात्र, हींडे परवरियो ।
करय निरंतर यज्ञ करम, मिथ्यामति मोहिय ||
अणचल होसे चरम नाण, दंसणह विसोहिय ॥ 6 ॥ वस्तु ॥
जंबूदीव जंबूदीव भरह वासंमि, खोणीतल मंडण, मगह देस सेणिय
नरेसर, वर गुब्बर गाम तिहां, विप्प बसे वसुभूइ सुन्दर ।
तसु पुहवि भज्जा, सयल गुण गण रूप निहाण ||
ताण पुत्त विज्जानिलो, गोयम अतिहि सुजाण ॥ 7 ॥
भास ॥ चरम जिणेसर केवलनाणी, चौविह संघ पइट्ठा जाणी।
पावापुर सामी संपत्तो, चउविह देव निकायहिं जुत्तो ॥ 8 ॥
देवहि समवसरण तिहां कीजे, जिण दीठे मिथ्यामति छीजे ।
त्रिभुवन गुरु सिंहासन बेठा, ततखिण मोह दिगंत पइट्ठा ॥ 9 ॥
क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाठा जिम दिन चोरा।
देव दुंदुभि आगासे बाजी, धरम नरेसर आव्यो गाजी ॥ 10 ॥
कुसुम वृष्टि विरचे तिहां देवा, चउसठ इंद्रज मांगे सेवा ।
चामर छत्र सिरोवरि सोहे, रूवहि जिनवर जग सहु मोहे ॥ 11 ॥
उपसम रसभर वर वरसंता, जोजन वाणि वखाण करंता ।
जाणवि वद्धमान जिन पाया, सुर नर किन्नर आवइ राया ॥12 ॥
कंत समोहिय झलहलकंता, गयण विमाणहि, रण रणकंता ।
पेक्खवि इन्दभूइ मन चिंते, सुर आवे अम यज्ञ हुवंते ॥ 13 ॥
तीर तरंडक जिम ते वहता, समवसरण पुहता गहगहिता ।
तो अभिमाने गोयम जंपे, इण अवसर कोपे तणु कंपे ॥ 14 ॥
मुढा लोक अजाण्युं बोले, सुर जाणंता इम कांई डोले ।
मो आगल कोई जाण भणीजे, मेरु अवर किम उपमा दीजे ॥ 15 वस्तु ॥
वीर जिणवर वीर जिणवर नाण सम्पन्न,
पावापुर पत्त नाह संसार तारण सुरमहिय,
तिहिं देवइ निम्महिय समवसरण बहु सुक्ख कारण,
जिणवर जग उज्जोय करै, तेजहि कर दिनकार ||
सिंहासण सामी ठव्यो, हुओ तो जय जयकार ॥ 16 ॥ भास
तो चढियो घणमाण गजे, इन्द्रभूव तो,
हुंकारो करी संचरिय, कवणसु जिनवर देवतो ।
जोजन भूमि समवसरण पेक्स्खवि प्रथमारंभ तो ॥
दह दिस देखे विबुध वधू, आवंति सुररंभ तो ॥ 17 ||
मणिमय तोरण दंड ध्वज, कोसीसे नवघाट तो,
वहर विवर्जित जंतुगण, प्रातिहारिज आठ तो
सुर नर किन्नर असुरवर, इंद्र इंद्राणी राय तो ।
चित्त चमक्किय चिंतवै ए, सेवंता प्रभु पाय तो ।। 18 ।।
सहसकिरण सामी वीरजिण, पेखिय रूप विशाल तो,
यह असंभव संभव ए, साचो ए इजाल तो ।
तो बोलावई त्रिजग गुरु, इंद्रभूइ नामेण तो ।
श्रीमुख संसय सामीसवे, फेडे वेद पएण तो ।। 19 ।।
मान मेलि मद ठेलि करी भगतिहिं नाम्यो सीस तो ।
पंच सयांसुं व्रत लियो ए गोयम पहिलो सीस तो ।
बंधव संजम सुणवि करी, अगनिभूइ आवेय तो ॥
नाम लेई आभास करे, ते पण प्रतिबोधेय तो ॥ 20 ॥
इण अनुक्रम गणहर रयण, थाप्या वीर इग्यार तो,
तो उपदेशे भुवन गुरु, संयमशुं व्रत बारतो ।
बिहु उपवासे पारणो ए, आपणपे विहरंत तो ।।
गोयम संजम जग सयल, जय जयकार करंत तो ॥ 21॥ वस्तु ॥
इंद्रभुइ इंद्रभूइ चढियो बहुमान,
हुंकारो करि कंपतो, समवसरण पहुतो तुरंत ।
जे जे संसा सामि सवे, चरम नाह फेडे फुरंत,
बोधि बीज संजाय मने, गोयम भवहि विरत्त,
दिक्खा लेई सिक्खा सही, गणहर पय संपत ॥22॥ भास ॥
आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमा पुण्य भरो,
दीठा गोयम सामि, जो निय नयणे अमिय झरो ।
समवसरण मझार, जे जे संशय ऊपजे ए,
ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनि पवरो ॥ 23 ॥
जिहां जिहां दीजे दीख, तिहां तिहां केवल उपजे ए
आप कनें अणहुंत, गोयम दीजे दान इम
गुरु ऊपर गुरु भक्ति सामी गोयम
उपनिय इण छण केवल नाण, रागज राखे रंग भरे ॥ 24 ॥
जो अष्टापद शैल, वंदे चढी चउवीस जिण,
आतम लब्धिवसेण, चरमसरीरी सो य मुनि ।
इय देसणा निसुणेह, गोयम गणहर संचरिय ।
तापस पन्नर सएण, तो मुनि दीठो आवतो ए ।। 25 ॥
तप सोसिय निय अंग, अम्हा सगति न उपजे ऐ,
किम चढसे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए ।
गिरुओ ए अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए
तो मुनि चढियो वेग, आलंबवि दिनकर किरण ॥ 26 ॥
कंचन मणि निप्पन्न, दंडकलस ध्वजवड सहिए,
पेखवि परमाणन्द, जिणहर भरतेसर महिय
निय निय काय प्रमाण, चिंहु दिसि संठिय जिणह बिंब,
पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥ 27 ॥
वयर सामीनो जीव, तिर्यक जृंभक देव तिहां,
प्रतिबोध्या पुंडरीक, कंडरिक अध्ययन भणी ।
वलता गोयम सामि, सवि तापस प्रतिबोध करे,
लेई आपण साथ, चाले जिम जूथाधिपति ।। 28 ।।
खीर खांड घृत आणअमिय वूठ अंगूठ ठवे,
गोयम एकण करावे पात्र, पारणो सवे
पंच सयां शुभ भाव, उज्ज्वल भरियो खीर मिसे,
साचा गुरु संयोग, कवल ते केवल रूप हुआ ॥ 29 ॥
पंच सया जिणनाह, समवसरण प्राकारत्रय,
पेखवि केवल नाण, उप्पन्नो उज्जोय करे I
जाणे जिणवि पीयूष, गाजंती घन मेघ जिम,
जिनवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पंचसया ॥ 30 | वस्तु ॥
इण अनुकम इण अनुक्रम नाण सम्पन्न
पन्नरसय परिवरियहरिय दुरिय जिणनाह बंदइ,
जाणेवि जगगुरु वयण, तिहि नाण अप्पाण निंदइ ।
चरम जिनेसर इम भणे, गोयम म करिस खेउ,
छेही जाय आपण सही, होस्या तुल्ला बेउ || 31 || भास ॥
सामियो ए वीर जिणन्द, पूनमचन्द जिम उल्लसिय,
विहरियो ए भरह वासम्मि, वरस बहुत्तर संबसिय ।
ठवतो ए कणय पउमेण, पाय कमल संघे सहिय,
आवियो ए नयनानंद, नयर पावापुर सुरमहिय ।। 32 ।।
पेखियो ए गोयम सामि, देवसमा प्रतिबोध करे
आपणो ए तिसला देवी, नंदन पुहतो परमपए !
वलतो ए देव आकाश, पेखवि जाण्यो जिण समे ए,
तो मुनि ए मन विखवाद, नाद भेद जिम ऊपनो ए ॥ 33 ॥
इण समे ए सामिय देखी, आप कनासुं टालियो ए,
जाणतो ए तिहुअण नाह, लोक विवहार न पालियो ए ।
अतिभलो ए, कीथलो सामि, जाण्यो केवल मांगसे ए,
चिन्तव्यो ए बालक जेम, अहवा केडे लागसे ए ॥ 34 ॥
हुं किम ए वीर जिणन्द, भगतिहिं भोले भोलब्यो ए,
आपणो ए ऊँचलो नेह, नाह न संपे साचव्यो ए
साचो ए वीतराग, नेह न जेणे लालियो ए
तिणसमे ए गोयमचित्त, राग वैरागे वालियो ए ॥ 35 ।।
आवतो ए जो उल्लड, रहितो रागे साहियो ए,
केवल ए नाण उप्पन्न, गोयम सहिज उमाहियो ए ।
तिहुअण ए जय जयकार, केवल महिमा सुर करे ए
गणधरु ए करय बखाण, भविया भव जिम निस्तरे ए ॥ 36 ॥ वस्तु ॥
पढ़म गणहर पढ़म गणहर बरस पच्चास,
गिहवासे संवसिय तीस बरस संजम विभूसिय,
सिरि केवल नाण पुण, बार बरस तिहुअण नमंसिय,
राजगृही नयरी उथ्यो, बाणवइ बरसाउ,
सामी गोयम, गुणनिलो, होसे सिवपुर ठाउ ॥ 37 ॥ भास ॥
जिम सहकारे कोयल टहुके, जिम कुसुमावन परिमल महके,
जिम चन्दन सौगन्ध निधि
जिम गंगाजल लहरिया लहके, जिम कणयाचल तेजे झलके,
तिम गोयम सोभाग निधि ॥ 38 ॥
जिम मानसरोवर निवसे हंसा, जिम सुरतरु वर कणयवतंसा
जिम महुयर राजीव बने
जिम रयणायर रयणे विलसे, जिम अंबर तारागण विकसे ||
तिम गोयम गुरु केवल घने ॥ 39 ॥
पूनम निसि जिम ससियर सोहे, सुरतरु महिमा जिम जग मोहे,
पूरब दिस जिम सहसकरो
पंचानन जिम गिरिवर राजे, नरवई घर जिम मयगल गाजे
तिम जिन सासन मुनि पवरो ॥ 40 ॥
जिम गुरु तरुवर सोहे साखा, जिम उत्तम मुख मधुरि भाषा
जिम वन के तकि महमहे ए
जिम भूमिपति भुयबल चमके, जिम जिन मन्दिर घण्टा रणके,
गोयम लब्धे गहगह्यो ए ॥ 41 ॥
चिन्तामणि कर चढियो आज, सुरतरु सारे वंछिय कान,
कामकुम्भ सहु वशि हुआ ए
कामगवी पूरे मन कामी, अष्ट महासिद्धि आवे धामी,
सामी गोयम अणुसरो ए ॥ 42 ॥
पणवक्खर पहिलो पभणीजे, माया बीजो श्रवण सुणीजे
श्रीमती सोभा संभव ए
देवां पुर अरिहंत नमीजे, विनयपहु उवझाय थूणीजे
इण मंत्रे गोयम नमो ए ॥ 43 ॥
पर घर वसतां काय करीजे, देस देसांतर काय भमीजे,
कवण काज आयास करो
प्रह ऊठी गोयम समरीजे, काज समग्गल ततखिण सीजे,
नव निधि विलसे तिहां घरे ए ॥ 44 ||
चउदह सय बाहोत्तर वरसे, गोयम गणहर केवल दिवसे,
कियो कवित्त उपगार परो
आदिहिं मंगल ए पभणीजे, परव महोच्छव पहिलो दीजे
रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥ 45 ||
धन माता जिण उयरे धरियो, धन्य पिता जिण कुल अवतरियो,
धन्य सुगुरु जिण दीखियो ए
विनयवंत विद्या भण्डार, तसु गुण पुहवी न लब्भइ पार
वड जिम साखा विस्तरो ए
गोयम सामीनो रास भणीजे, चउविह संघ रलियायत कीजे,
रिद्धि वृद्धि कल्याण करो ॥ 46 ॥
कुंकुम चंदन छडो दिवरावो, माणक मोतीना चौक पुरावो,
रयण सिंहासण बेसणो ए ।
तिहां बेसी गुरु देसना देसी, भविक जीवना काज सरेसी
नित नित मंगल करो ।
श्री संघ उदय सकल आनंद करो ॥ 47 ॥