ग्यारह अंग सूत्रों में से द्वितीय अंग सूत्र 'सूत्रकृतांग सूत्र' है। इसे प्राकृत में
'सूयगडांग सूत्र' कहते हैं । यह आगम सूत्र दो श्रुतस्कंधों में विभक्त है। प्रथम
श्रुतस्कंध में सोलह अध्ययन हैं, जिसमें से छठा अध्ययन है 'वीर स्तुति' ।
वीर स्तुति में श्री सुधर्मा स्वामी ने भगवान महावीर स्वामी के गुणों का गुण
कीर्तन किया है । इस स्तुति में गुंफित एक-एक शब्द, एक-एक चरण, एक-एक
गाथा, भगवान के गुणों की स्तुति से परिपूर्ण है। इस स्तुति का प्रारम्भ पुच्छिस्सुणं
शब्द से होता है। अत: इसे 'पुच्छिस्सुणं' भी कहते हैं ।