भूमिका
मध्य जीवन की अक्षत यात्रा की सफल बाल्यकाल में ही पड़ जाती है। बाल्यकाल में जैसा जीवन बालक जीता है, भविष्य में उसी की छाया उसके व्यक्तित्व पर दिखाई देती है। अगर बाल्यकाल में ही बालक को सुसंस्कार जनित व्यवहार करने की आदत पड़ जाये तो उसे जीवन में सफलता प्राप्त करने में जरा सी भी कठिनाई नहीं होगी।
इसी मानसिकता को ध्यान में रखकर हमने यह पुस्तक "माता-पिता के साथ हमारा व्यवहार" को तैयार किया है।
हमारे जीवन में माता-पिता के अनन्त अनन्त उपकार होते हैं और उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। माता-पिता के साथ सद्व्यवहार के संस्कार बाल्यकाल से ही हमारे जीवन में आरोपित होने चाहिए।