मुक्कोश, जिसे मुखवस्त्रिक भी कहा जाता है, जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अहिंसा के मूल सिद्धांत पर आधारित जैन धर्म सभी जीवों के प्रति सम्मान और करुणा का संदेश देता है, चाहे वे कितने ही सूक्ष्म या अदृश्य क्यों न हों। मुक्कोश एक ऐसा आवरण है जो सांस लेने के दौरान अनजाने में सूक्ष्म जीवों के निगलने या नष्ट होने से बचाने के लिए पहना जाता है, जिससे अहिंसा के सिद्धांत का पालन किया जा सके।
यह विशेष रूप से आठ परतों में निर्मित होता है, जो इसे और भी प्रभावी बनाता है तथा सूक्ष्म जीवों की रक्षा सुनिश्चित करता है। इसकी यह संरचना जैन धर्म के मूल्यों को दर्शाती है और जीवन के प्रति संवेदनशीलता बनाए रखने में सहायक होती है। मुक्कोश पहनकर, जैन अनुयायी अहिंसा के इस पवित्र सिद्धांत को अपने दैनिक जीवन में अपनाते हैं, जिससे उनका हर श्वास एक करुणा और सम्मान का प्रतीक बन जाता है।
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