मुहपत्ती जैन धर्म की एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो वाणी पर नियंत्रण का प्रतीक मानी जाती है। यह न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक उपयोगी वस्तु है, बल्कि प्रभावना के लिए एक श्रेष्ठ उपहार भी हो सकता है। यह जैन धर्म की दैनिक साधना और धार्मिक अनुष्ठानों में अहम भूमिका निभाती है।
प्राचीन काल से ही जैन मुनि (महाराज साहब), श्रावक और श्राविका इसे समायिक, पूजन, प्रवचन और कई अन्य धार्मिक क्रियाओं के दौरान उपयोग करते आए हैं। जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा परमोधर्म है, और मुपट्टि इस सिद्धांत को अपनाने में सहायक होती है, जिससे सांस लेने के दौरान किसी भी जीव को हानि न पहुंचे।
मुहपत्ती का उपयोग कर हम अपने वचनों और सांसों को संयमित कर सकते हैं, अहिंसा के मार्ग पर चल सकते हैं और जैन धर्म की परंपराओं को अपने जीवन में अपना सकते हैं।