मुखोश, जिसे मुखवस्त्रिक भी कहा जाता है, जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक वस्त्र है। इसे उपयोग करने का मुख्य उद्देश्य सूक्ष्म जीवों और कीटों के अनजाने में नाश से बचाव करना है। यह धार्मिक और आध्यात्मिक साधना में शुद्धता बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है।
इस मुखोश में आठ परतों की विशेष संरचना होती है, जो सूक्ष्म जीवों को सांस के माध्यम से भीतर जाने से रोकती है, जिससे अहिंसा का पालन सुनिश्चित होता है। इसे पूजा, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण और अन्य धार्मिक कार्यों के दौरान उपयोग किया जाता है।
शुद्ध आस्था और आध्यात्मिक अनुशासन को बनाए रखने के लिए पूजा रुमाल (मुखोश) एक आवश्यक वस्त्र है।
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