यह सफेद ऊन से बनी हुई स्थानकवासी पुंजनि जैन धर्म के मूल सिद्धांत "अहिंसा परमों धर्म" का प्रतीक है। स्थानकवासी साधर्मी इसका उपयोग सामायिक, स्वाध्याय, ध्यान या किसी भी धार्मिक क्रिया से पहले स्थान को पूंजने यानी धीरे से साफ करने के लिए करते हैं, ताकि सूक्ष्म जीवों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।
यह पुंजनि विशेष रूप से नरम और कोमल ऊन से बनाई जाती है, जिससे ज़मीन पर बैठे किसी भी जीव को हानि न पहुँचे। जैन आचरण में यह एक अनिवार्य वस्तु है, जो भूमि प्रमार्जन के माध्यम से अहिंसा के पालन को दर्शाती है।
स्थानकवासी साधु-साध्वियों एवं श्रावक-श्राविकाओं द्वारा यह हमेशा अपने पास रखी जाती है। यह सिर्फ एक वस्तु नहीं, बल्कि करुणा और जागरूकता का प्रतीक है — जो हर क्षण यह याद दिलाती है कि अहिंसा सिर्फ एक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है।
अपने सामायिक किट या ध्यान-साधना के उपकरणों में इस पुंजनि को जोड़ें और संयम, शांति व आत्मशुद्धि की ओर एक और पवित्र कदम बढ़ाएँ।