जैन परम्परा में अति विश्रुत भक्तामर स्तोत्र के रचयिता श्री मानतुंगाचार्य हैं !
मानतुंगाचार्य ने उस समय आदिनाथ प्रभु की स्तुति प्रारंभ की स्तुति में लीन हो गए, ज्यों-ज्यों श्लोक बनाकर वे बोलते गए, त्यों-त्यों ताले टूटते गए। सभी ने इसे बड़ा आश्चर्य माना। इस आदिनाथ स्तोत्र का नाम भक्तामर स्तोत्र पड़ा, जो सारे जैन समाज में बहुत प्रभावशाली माना जाता है तथा अत्यंत श्रद्धायुक्त पढ़ा जाता है.
भक्तामर के काव्यों का जाप एक माला के रूप में प्रतिदिन प्रातःकाल के समय करना चाहिए। यह भक्तामर स्तोत्र महान प्रभावशाली है, सब प्रकार से आनंद मंगल करने वाला है। (पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके पाठ करना उपयुक्त है।)
यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली एवं अपूर्व आत्म-प्रसन्नता देने वाला है।
भक्तामर स्त्रोत्र में ४८ गाथा हैं।
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